जिन युवाओं का हिंसक प्रदर्शन देखकर आप हिल से गए हैं यही युवा 21 से 25 साल की उम्र में बेरोजगार बनकर जब बाहर आएंगे और अपने आप को रेगुलर करने के लिए आंदोलन रत होंगे तो क्या मंजर होगा इसकी कल्पना
राहुल गाँधी के कैंब्रिज में दिए गए बयान को राष्ट्रविरोधी साबित करने की होड़ मची हुई है। जबकि असलियत यह है कि केन्द्रीय एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल और पेगासस के खतरे ने देश के संघीय ढांचे पर जो चोट मारी है वह
प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली ने क़िताबी ज्ञान से ज़्यादा किसी काम को करके उस अनुभव से उसके बारे में सीखने पर ध्यान केंद्रित किया। वहां आज़ादी थी आपकी सोच, आपके हुनर को पहले तलाशने की और फ़िर उसे निखारने की। क्लास
जनसंख्या विस्फोट लोगों को आमदनी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा इत्यादि की पर्याप्त उपलब्धता ना होने के कारण इंसान मेहनत तो अधिक करता है जिस से उसकी आमदनी बढ़ती है लेकिन बढ़ी हुई आमदनी सीमित स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोज़गार इत्यादि से मेल नहीं खा
अन्य विश्व की तरह भारत में भी वैक्सीन के लिए प्रयास जारी थे। संक्रमण के मामलों में कुछ महीनों के पश्चात गिरावट आई पर वह सरकार के प्रयासों से नहीं बल्कि हर्ड इम्युनिटी से था। सरकार का ध्यान हमेशा की तरह कुछ
देश किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं था और बंटवारे की लाइन “रैडक्लिफ़ लाइन” पर समझौते पर कांग्रेस की ओर से नेहरू और अबुल कलाम आजाद, मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व करने वाले जिन्ना, दलितों की ओर से अंबेडकर, और सिखों की ओर से
रंगभेद में देश में काले रंग के लोगों के लिए “कल्लू”, “अफ्रीकन”, “नीग्रो” इत्यादि। ऐसे लोगों मज़ाक बनना, उन पर रंग गोरा करने पर ज़ोर, रंग गोरा करने के लिए सौन्दर्य-प्रसाधन की पूरी इंडस्ट्री और विज्ञापन और विवाह के लिए विज्ञापनों और
दामोदर सावरकर, जिसे आज के दक्षिणपंथी गौ रक्षक पूरी कट्टरता से पूजते हैं, ख़ुद गाय को माँ का दर्जा देने के इस हद तक ख़िलाफ़ थे कि व्यंग्यात्मक भाव में कहते थे कि गाय धर्म विशेष की नहीं बल्कि सिर्फ़ एक बछड़े
आप क्यों देखते हैं टीवी? क्या मजबूरी है आपकी? क्या आपके डाईनिंग रूम में सजी टीवी आपके मतलब की खबरें दिखाता है? कब आपने अपने बच्चों की स्वास्थ्य और शिक्षा पर कोई प्राइम टाइम देखा है? जो पत्रकार इसे दिखाने की कोशिश
महावीर जैन के लिए अहिंसा जहां एक दार्शनिक और नैतिक जीवन मूल्य था वहीँ गांधी, किंग और मंडेला के लिए अहिंसा एक सामाजिक और राजनीतिक रणनीति भी थी। ऐसी रणनीति जिस में हाक़िम से आँख में आँख डालकर अपनी बात रखने और