आखिर वो “हम भारत के लोग” ही तो हैं जिनसे संविधान अपनी प्रस्तावना में सर्वाधिक आशा करता है न की पार्टी, राजनेताओं और मंत्रियों से.नागरिक दायित्व कहते हैं कि राजनीति के अपराधीकरण के दौर के बाद अब इस संवेदनशील दौर में, फेसबुकीकरण
फ्रेंच क्रांति के दौरान एक बड़ा सवाल उठा कि क्या राजा को पूर्ण वीटो का अधिकार होना चाहिए या नहीं। जो पूर्ण वीटो के पक्ष में थे वो उस बैठक में सभापति के राइट में बैठे थे और जो सदियों की इस
दर्द भरा मन यह व्योम बड़ा विस्तृत लगता,शून्य में आहें खो जातीं, स्मृति में अपनों के आते,आँखों से ढलते हैं मोती। अब और न कुछ चहिये मुझको,आँखों में हो पावन ज्योति, नैन से नैन मिलाते रहो प्रभु,जिससे निकले असली मोती। दर्द
तमाम तरह की कमियों के बावजूद जिस तरह से दिल्ली की एक अदनी सी कही जाने वाली पार्टी ने पंजाब में जीत का परचम फहराया है वो मेरे लिए भारतीय राजनीति का एक टर्निंग प्वाइंट है।….जनता विकल्प ढूंढ लेती है। आप ज्यादे
‘भक्त’ वो कुँए की घिरनी है, अंधकार और गहराई के ऊपर लटके रहने को अभिशप्त, प्रकाश और अंधकार के बीच रहकर भी, अंधकार की ओर है उनका झुकाव। कुआँ चाहे ख़ाली हो या भरा, रेत से पटा हो या
“लियाकत अली साहब और हमारे प्रधानमंत्री में भी यही समझौता हुआ है न, कि जो पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान चले जाएँ; लेकिन लियाकत अली साहब, सरदार और जवाहरलाल भी किसी को मजबूर नहीं कर सकते। कोई कानून नहीं है। इसीलिए जो
अगर एक तर्कसंगत रवैया समाज में फैले अंधविश्वास, भावुकता और तर्कहीनता को किसी भी तरह से कम करता है तो इस बात पर मेरा गहरा विश्वास है कि वह समाज निश्चित तौर पर रचनात्मकता और प्रगति की ओर अग्रसर है। एक
आज़ादी के 70 सालों के बाद भी यहाँ रोजगार के नाम पर खेती के अलावा कुछ खास नहीं है। पक्ष और पार्टी से परे बेरोजगारी हर राज्य की समस्या है। एक भी भर्ती या बहाली ऐसी नहीं जो संदेह या कोर्ट के