अभी तो 1 महीना भी नहीं हुआ प्रतियोगी परीक्षा का रिजल्ट आये। खुशी से झूम उठा था राजीव (काल्पनिक नाम) मेरिट लिस्ट में अपना नाम देखकर। बहुत संघर्ष हो गया अब सारे सपने पूरे होंगे। बंद कमरे में छत को निहारते हुए
परिश्रम का फल भूत कि चिंता भूत हुई वह भूत किसी ने न देखा जी भर कर जीना हक मेरा आगंतुक कल है अनदेखा। समय जो बीत रहा हर क्षण; यह दुर्लभ भी है चोखा है, पर सोच सोच कर डर
आजकल टीवी डिबेट हो या मंच से नेताओ द्वारा दिया गया राजनीतिक भाषण या फिर तथाकथित धर्मगुरुओ द्वारा दिया जाने वाला ज्ञान, हर जगह लोग अपने अपने हिसाब से धर्म को परिभाषित करते है। सबका अपना तरीका है और सबका अपना निहित
“सिर्फ़ लिख़ने या कहने से क्या होगा, पॉलिटिक्स में उतरो और कुछ करो” “यहाँ इतना बोल रहे हो, पाकिस्तान/सीरिया में जा कर बोल के देखो तब पता चलेगा” “तब क्यों नहीं बोले, तब कहाँ थे?” सरकार से या सिस्टम से सवाल
लोकतान्त्रिक समाज क्या है और संविधान बनाते समय संविधान निर्माताओं ने किन मूल्यों और आदर्शों को संविधान और लोकतंत्र की नींव माना था, यह बात भारत के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू, पहले उपराष्ट्रपति और ‘दार्शनिक राजा’ के नाम से विख्यात सर्वपल्ली
हेलो! मैं गांधी “मैं खुद तो बड़ी बड़ी कंपनियों और लंबी-चौड़ी मशीनरी के जरिए उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ। यदि बाहर खद्दर और उसके सारे अर्थों को अपना ले, तो मैं यह आशा नहीं छोड़ूँगा कि भारत केवल उतने ही
#कलम ये जो कलम तोड़ने की साज़िश रच रहे हो, तुम अपने ही घर की आज़माइश कर रहे हो। इस स्याही में मुक़ाबले का डीएनए है साहेब, तुम बेवजा सुखाने की कोशिश कर रहे हो। अंधेरा क़ैद का ‘कलम-स्याही’ गाढ़ी करेगा, तुम
“यज्ञ का अर्थ ऐसे कार्य से है जिसका उद्देश्य दूसरों का कल्याण है। ऐसे कार्य के बदले किसी लाभ की इच्छा भी नहीं होनी चाहिए, चाहे वो इच्छा लौकिक हो या आध्यात्मिक। ‘कार्य’ के अर्थ को वृहद् परिप्रेक्ष्य में लेने की आवश्यकता