वेदों को लेकर जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि – “बहुत से हिंदू वेदों को श्रुति ग्रंथ मानते हैं । खास तौर पर एक दुर्भाग्य की बात मालूम पड़ती है , क्योंकि इस तरह हम उनके सच्चे महत्व को खो बैठते
“समाचार पत्रों की वास्तविक जिम्मेदारी है, लोगों को शिक्षित करना, लोगों के दिमाग की सफाई करना, उन्हे संकुचित सांप्रदायिक विभाजन से बचाना, और सार्वजनिक राष्ट्रवाद के विचार को प्रोत्साहित करने के लिए सांप्रदायिक भावनाओं का उन्मूलन करना। लेकिन ऐसा लगता है
“इस भारत देश में तर्क की चिता जल चुकी है, अब जिद्द की परवरिश जारी है।” मेरे एक मित्र जो कि दो-तीन छात्र आन्दोलनों का अनुभव रखते हैं उनकी लिखी हुई एक कविता है. जो जिंदा हैं वो सड़कों पर बैठे हैं,जो
विश्व आर्थिक मंच ने ‘वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2021’ जारी करके भारत को पिछले साल के मुक़ाबले 28 पायदान नीचे खिसकाया है, 2020 में भारत में लैंगिक अंतराल की रैंकिंग 112वीं थी और इस साल लैंगिक अंतराल बढ़ा, तो यह रैंकिंग 140वीं हो
“शरीर पर एक प्रकार की लाली स्वास्थ्य सूचित करती है।दूसरे प्रकार की रक्त-पित्त रोग का चिन्ह है। फिर एक स्थान में खून का जमा हो जाना जिस तरह शरीर को हानि पहुँचाता है उसी तरह एक स्थान में धन का संचित हो
आज 8 मार्च 2021 है, किसान आंदोलन के 103 दिन हो गए हैं, पर किसानों की मांगें पूरी नहीं हुई हैं, माहौल ये है कि जिस सरकार से वो मांगे कर रहे हैं उनका पूरा ध्यान बंगाल के चुनाव पर है,
‘क़हर’ की कविता थालियाँ सड़कों पर.. बहुत देर से देर हो रही है, सरकार उठी नहीं अभी सो रही है! आंदोलन में जो भीड़ सड़कों पर है उसमें किसान नहीं है, वो असल में अनाज है जो दिल्ली के
संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण (अनुच्छेद-87) पर धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमन्त्री इतने उत्साहित दिखे तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, मैंने सोचा इस अभिभाषण पर वो इतने केन्द्रित क्यों हैं? यह अभिभाषण तो प्रधानमन्त्री कार्यालय द्वारा,मंत्रालयी सुझावों के आधार पर तैयार किया जाता