मैंने बहुत कम पुस्तकें पढ़ी हैं परंतु उन्हे अच्छे से हजम करने की पूरी कोशिश की है: महात्मा गाँधी

विद्यार्थी-जीवन में पाठ्यपुस्तकों के अलावा मेरा वाचन नहीं के बराबर समझना चाहिए। और कर्मभूमि में प्रवेश करने के बाद तो समय ही बहुत कम रहता है। इस कारण आज तक भी मेरा पुस्तक-ज्ञान बहुत थोड़ा है। मैं मानता हूँ कि इस अनायास

…इस तरह तो मुझे फांसी से भी बचाया जाना पसंद नहीं: महात्मा गाँधी

मैंने असंख्य बार कहा है कि सत्याग्रह में हिंसा, लूटमार, आगजनी आदि के लिए कोई स्थान नहीं है; लेकिन इसके बावजूद हमने मकान जलाये हैं, बलपूर्वक हथियार छीने हैं, लोगों को डरा-धमकाकर उन से पैसा लिया है, रेलगाड़ियाँ रोकी हैं, तार काटे

‘अभय’ के लिए हरिश्चंद्र की तरह बर्बाद होने की तैयारी होनी चाहिए: महात्मा गाँधी

अभय का मतलब है तमाम बाहरी भयों से मुक्ति। मौत का डर, धन-दौलत लुट जाने का डर, कुटुम्ब-कबीले के बारे में डर, रोग का डर, हथियार चलने का डर, आबरू का डर, किसी को बुरा लगने का – चोट पहुँचाने का डर,

कॉंग्रेसजनों को प्रत्येक हिन्दू और अहिन्दू का प्रतिनिधि बन जाना चाहिये: महात्मा गाँधी

साम्प्रदायिक एकता की आवश्यकता के बारे में सब सहमत हैं। परन्तु सबको यह मालूम नहीं है कि, एकता का अर्थ राजनीतिक एकता नहीं है, जो ऊपर से थोपी जा सकती है। उसका अर्थ है न टूटने वाली हार्दिक एकता। ऐसी एकता पैदा

सांप्रदायिक हत्याओं के खिलाफ बदले की भावना से समाज में शांति संभव नहीं है : महात्मा गाँधी

खून का बदला खून से या मुआवजे से कभी नहीं लिया जा सकता। खून का बदला लेने का एकमात्र उपाय यह है कि बदला लेने की कोई इच्छा न रखकर हम खुशी से अपने को बलिदान कर दें। बदले या मुआवजे से

ब्राह्मण और भंगी, सबमें भगवान विद्यमान है : गाँधी

  यदि विश्व में जो कुछ है वह सब ईश्वर से व्याप्त है, अर्थात,  ब्राह्मण और भंगी, पंडित और मेहतर, सबमें भगवान विद्यमान है, तो न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा, सभी सर्वथा समान है; समान इसलिए क्योंकि सभी उसी

‘आधी आबादी’ और न्यायालय

रेप और गैंगरेप को लेकर हमारी आधुनिक संवेदनशीलता दिसंबर 2012 को हुए निर्भया गैंगरेप मामले से जुड़ी हुई है। उसके बाद शक्तिमिल(मुंबई), कठुआ, उन्नाव, हाथरस जैसे तमाम कभी न खत्म होने वाली अंतहीन सूची महिलाओं के प्रति समाज की भावनाओं को उजागर

“लोग मेरे स्वागत-सत्कार में बहुत सा धन खर्च कर देते हैं उससे स्वागत में कोई वृद्धि नहीं होती”: इंदिरा गाँधी

“ऐसा लगता है की हमें जरूरत से ज्यादा सम्मेलन आयोजित करने की आदत है। कुछ सम्मेलनों से बहुत अधिक लाभ मिलता है। लेकिन बड़ी संख्या ऐसे सम्मेलनों की है जो पिछली बातें ही दुहराते हैं और खर्चीले होते हैं। मेरा एक काम

कश्मीर ‘फाइल्स’ को लेकर 10 सवाल जिनके जवाब आपको जानने चाहिए

इतिहासकार अशोक कुमार पांडे द्वारा ऐसे  10 सवालों के जवाब दिए गए जिससे कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को लेकर आपके संशय दूर करने में मदद मिलेगी। कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को लेकर पिछले एक हजार साल के इतिहास के पन्नों को जानने

“अगर हिंदुस्तान का नसीब खराब है तो ईश्वर मुझे उठा ले!”

“लियाकत अली साहब और हमारे प्रधानमंत्री में भी यही समझौता हुआ है न, कि जो पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान चले जाएँ; लेकिन लियाकत अली साहब, सरदार और जवाहरलाल भी किसी को मजबूर नहीं कर सकते। कोई कानून नहीं है। इसीलिए जो

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