विद्यार्थी-जीवन में पाठ्यपुस्तकों के अलावा मेरा वाचन नहीं के बराबर समझना चाहिए। और कर्मभूमि में प्रवेश करने के बाद तो समय ही बहुत कम रहता है। इस कारण आज तक भी मेरा पुस्तक-ज्ञान बहुत थोड़ा है। मैं मानता हूँ कि इस अनायास
मैंने असंख्य बार कहा है कि सत्याग्रह में हिंसा, लूटमार, आगजनी आदि के लिए कोई स्थान नहीं है; लेकिन इसके बावजूद हमने मकान जलाये हैं, बलपूर्वक हथियार छीने हैं, लोगों को डरा-धमकाकर उन से पैसा लिया है, रेलगाड़ियाँ रोकी हैं, तार काटे
अभय का मतलब है तमाम बाहरी भयों से मुक्ति। मौत का डर, धन-दौलत लुट जाने का डर, कुटुम्ब-कबीले के बारे में डर, रोग का डर, हथियार चलने का डर, आबरू का डर, किसी को बुरा लगने का – चोट पहुँचाने का डर,
साम्प्रदायिक एकता की आवश्यकता के बारे में सब सहमत हैं। परन्तु सबको यह मालूम नहीं है कि, एकता का अर्थ राजनीतिक एकता नहीं है, जो ऊपर से थोपी जा सकती है। उसका अर्थ है न टूटने वाली हार्दिक एकता। ऐसी एकता पैदा
खून का बदला खून से या मुआवजे से कभी नहीं लिया जा सकता। खून का बदला लेने का एकमात्र उपाय यह है कि बदला लेने की कोई इच्छा न रखकर हम खुशी से अपने को बलिदान कर दें। बदले या मुआवजे से
यदि विश्व में जो कुछ है वह सब ईश्वर से व्याप्त है, अर्थात, ब्राह्मण और भंगी, पंडित और मेहतर, सबमें भगवान विद्यमान है, तो न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा, सभी सर्वथा समान है; समान इसलिए क्योंकि सभी उसी
रेप और गैंगरेप को लेकर हमारी आधुनिक संवेदनशीलता दिसंबर 2012 को हुए निर्भया गैंगरेप मामले से जुड़ी हुई है। उसके बाद शक्तिमिल(मुंबई), कठुआ, उन्नाव, हाथरस जैसे तमाम कभी न खत्म होने वाली अंतहीन सूची महिलाओं के प्रति समाज की भावनाओं को उजागर
“ऐसा लगता है की हमें जरूरत से ज्यादा सम्मेलन आयोजित करने की आदत है। कुछ सम्मेलनों से बहुत अधिक लाभ मिलता है। लेकिन बड़ी संख्या ऐसे सम्मेलनों की है जो पिछली बातें ही दुहराते हैं और खर्चीले होते हैं। मेरा एक काम
इतिहासकार अशोक कुमार पांडे द्वारा ऐसे 10 सवालों के जवाब दिए गए जिससे कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को लेकर आपके संशय दूर करने में मदद मिलेगी। कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को लेकर पिछले एक हजार साल के इतिहास के पन्नों को जानने
“लियाकत अली साहब और हमारे प्रधानमंत्री में भी यही समझौता हुआ है न, कि जो पाकिस्तान जाना चाहें वे पाकिस्तान चले जाएँ; लेकिन लियाकत अली साहब, सरदार और जवाहरलाल भी किसी को मजबूर नहीं कर सकते। कोई कानून नहीं है। इसीलिए जो