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चुनाव और बेरोजगारी में संबंध!

आज़ादी के 70 सालों के बाद भी यहाँ रोजगार के नाम पर खेती के अलावा कुछ खास नहीं है। पक्ष और पार्टी से परे बेरोजगारी हर राज्य की समस्या है। एक भी भर्ती या बहाली ऐसी नहीं जो संदेह या कोर्ट के

मुझे समझायें मैं कैसे हिन्दू धर्म को नुकसान पहुँचा रहा हूँ ?

“सभ्यता का नियम तो यह है कि जिन लोगों को कुरान शरीफ की आयत पर आपत्ति है वे अपना विरोध प्रकट करके चले जाएं और बाद में मुझको समझायें कि मैं इससे किस प्रकार हिन्दू धर्म को नुकसान पहुँचाता हूँ।  मैं समझदार

बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ गली- गली सुलगते आंदोलन !

देश में बेरोज़गारी की विकराल होती समस्या और सोती हुई राज्य व केंद्र सरकारों के ख़िलाफ़ आम आवाज़ें बुलंद हो रही हैं। कोई रोकर, कोई चीखकर तो कोई लगभग गाली देने की भाषा में सरकारों को कोस रहा है। मंदिर- मस्जिद समेत

काले कोट का ‘तक्षक’ !

    विधान का ‘भगवान’     झंडे की ‘बिरादरी’ के कुछ लोगों ने, ‘विधान’ के भगवान, इंसान, को घायल कर दिया है, इंसान का अपमान, विधान में विराजमान, देश के ‘प्रधान’ के धृणा अनुसंधान का परिणाम है।   विधान का संरक्षक,

‘विश्वास’: मानवीय संवेदनाओं का धाम!

विश्वास, मानव मन में स्थित एक ऐसा स्थान है, जहाँ एक लंबी यात्रा तय करके ही पहुंचा जा सकता है। यदि हम स्वयं को भी किसी बात का भरोसा दिलाना चाहते हैं तो यह यात्रा हमें स्वयं के मन में करनी होती

क्या प्रेम की जननी आकर्षण है?

समस्त ब्रम्हांड और उसका छोटा से छोटा कण भी विज्ञान और विज्ञान के नियमों से संचालित है। ब्रम्हांड की उत्पत्ति बिग बैंग से हुई यह एक विस्फोट था और इस विस्फोट को निर्माण की दिशा में ले जाने वाला था गुरुवाकर्षण बल।

भगत सिंह ने साम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए ये दो नियम बनाए थे

द पैराग्राफ़/The Paragrapgh   भगत सिंह के सहयोग से बनाई गयी ‘नौजवान भारत सभा’ के छह नियमों में से(जिन्हें भगत सिंह ने ही तैयार किया था) दो इस तरह थे 1) ऐसी किसी भी संस्था, संगठन या पार्टी से किसी तरह का

“…वे संविधान पर गर्व नहीं कर सकते”

लोकतान्त्रिक समाज क्या है और संविधान बनाते समय संविधान निर्माताओं ने किन मूल्यों और आदर्शों को संविधान और लोकतंत्र की नींव माना था, यह बात भारत के पहले प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू, पहले उपराष्ट्रपति और ‘दार्शनिक राजा’ के नाम से विख्यात सर्वपल्ली

‘मैं खुद.. उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ’

हेलो! मैं गांधी    “मैं खुद तो बड़ी बड़ी कंपनियों और लंबी-चौड़ी मशीनरी के जरिए उद्योगों के केन्द्रीकरण के विरुद्ध हूँ। यदि बाहर खद्दर और उसके सारे अर्थों को अपना ले, तो मैं यह आशा नहीं छोड़ूँगा कि भारत केवल उतने ही

“इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वेदों में तथाकथित रूप से जानवरों की बलि को स्थान प्राप्त है”: महात्मा गाँधी

“यज्ञ का अर्थ ऐसे कार्य से है जिसका उद्देश्य दूसरों का कल्याण है। ऐसे कार्य के बदले किसी लाभ की इच्छा भी नहीं होनी चाहिए, चाहे वो इच्छा लौकिक हो या आध्यात्मिक। ‘कार्य’ के अर्थ को वृहद् परिप्रेक्ष्य में लेने की आवश्यकता